भोपाल के एम्स में अब आईवीएफ ट्रीटमेंट की सुविधा शुरू होने जा रही है। एम्स भोपाल प्रदेश का पहला सरकारी अस्पताल होगा, जहां यह सुविधा होगी। एम्स डायरेक्टर डॉ. अजय सिंह ने बताया कि यह सुविधा जून के अंत तक शुरू होने की उम्मीद है। आईवीएफ स्किल लैब में डिजिटल सिमुलेटर लगाए गए हैं। इनसे डॉक्टर हिस्टेरोस्कोपी, डिंब पिक-अप और भ्रूण स्थानांतरण का अभ्यास कर सकेंगे।
ये सिमुलेटर एआई तकनीक पर आधारित हैं। इनमें अलग-अलग कठिनाई स्तर के केस शामिल हैं। इससे डॉक्टरों को बेहतर प्रशिक्षण मिलेगा। आईवीएफ उन महिलाओं के लिए सहायक है, जिन्हें गर्भधारण में दिक्कत होती है। आज की जीवनशैली, खानपान और तनाव के कारण महिलाओं को कंसीव करने में परेशानी होती है। कई बार मिसकैरेज भी हो जाता है।
ऐसे होता है आईवीएफ इस प्रक्रिया से पहले महिला और पुरुष जांच होती है। पुरुष के स्पर्म को लैब में जांचा जाता है। सक्रिय शुक्राणु अलग किए जाते हैं। महिला के अंडे को इंजेक्शन से निकालकर फ्रीज किया जाता है। फिर अंडे पर सक्रिय शुक्राणु डाले जाते हैं। तीसरे दिन भ्रूण तैयार हो जाता है। उसे कैथेटर की मदद से महिला के गर्भाशय में डाला जाता है। दो हफ्ते बाद जांच होती है और प्रेग्नेंसी से जुड़ी सलाह दी जाती है।