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ये ‘हलवाई स्ट्राइक’ ‘पाक’ पर है या ‘पाकशास्त्र’ पर ?

Updated on 29-05-2025 09:34 AM
पहलगाम में आंतकी हमला और उसके बाद आॅपरेशन सिंदूर के तहत भारतीय सेना के पाकिस्तान पर जवाबी हमले के बीच आतंकियों की पनाहगाह पाकिस्तान को लेकर जो गुस्सा भारत में उभरा, उससे इस बार मिठाइयां भी नहीं बच सकीं। जयपुर के मिठाई विक्रेताअो ने पाक पर हलवाई स्ट्राइक करते हुए मशहूर मिठाई मैसूरपाक का नाम बदलकर ‘मैसूर श्री’ कर ‍िदया। इसी तरह चंडी भस्म पाक का नया नाम ‘चंडी भस्म श्री’ हो गया है। जयपुर की प्रसिद्ध ‘बॉम्बे मिष्ठान भंडार’ के महाप्रबंधक विनीत त्रिखा ने कहा कि हम स्पष्ट संदेश देना चाहते हैं कि जो लोग भारत की ओर आंख उठाने की हिम्मत करेंगे उनके नाम मिटा दिए जाएंगे तथा हर भारतीय अपने तरीके से जवाब देगा। यह हमारा मीठा, प्रतीकात्मक प्रतिशोध है। दूसरे ने कहा कि ह पाक की अमानवीय आतंकी हरकतों की सहज सांस्कृतिक प्रतिक्रिया है। एक तर्क यह भी है कि मिठाइयों के नाम से ‘पाक’ हटाना राष्ट्रीय गौरव का प्रतीक है। भारतीय सैनिकों ने सीमा पर पाकिस्तान को सबक सिखाया, ऐसे में हलवाई (मिठाईवाले) अपने स्तर पर जो कर सकते हैं, कर रहे हैं। दावा है कि ‘पाक’ को ‘श्री’ में बदलने से मिष्ठान्न प्रेमी ग्राहक भी खुश हैं। यह बात अलग है कि शब्द बदलने से भाव बदल सकता है, स्वाद नहीं। यानी  पहले ‘पाक’ को उदरस्थ करते थे, अब ‘श्री’ को करेंगे। याद रहे कि हमारा पड़ोसी ‘पाक’ तो 78 साल पहले वजूद में आया है, मगर भारतीय ‘पाक’ तो हजारों सालों से हमारी संस्कृति का गौरवशाली हिस्सा है।  
बेशक, धूर्त पाकिस्तान को हर संभव तरीके से सबक सिखाया जाना चाहिए, लेकिन इसके साथ यह विवेक भी जरूरी है कि प्रतिशोध आखिर हम किस से और क्या सोच कर ले रहे हैं। हम यह बदला अज्ञान से ले रहे हैं या ज्ञान से? फारसी के ‘पाक’ से ले रहे हैं या संस्कृत के ‘पाक’ से? ‘पवित्रता’ से ले रहे हैं या ‘शुद्धता’ से? संयोग से ‘पाक’ शब्द संस्कृत और फारसी दोनो भाषाअों में है, लेकिन दोनो में अर्थ भेद है। लिहाजा क्या हम पाकिस्तान को नापाक ठहराकर उसके ‘पाक’ होने के दावे को बेनकाब कर रहे हैं या फिर हमारे ही सदियों पुराने ‘पाकशास्त्र’ को खारिज कर रहे हैं? नाम बदलें, लेकिन ऐसे भी न बदलें कि हमे हमारी ही विरासत को नकारना पड़े। ‘मैसूर पाक’ को ‘मैसूर श्री’ बना देना, कुछ इसी तरह की हिमाकत है, बजाए पाक को पाकशास्त्रीय सबक सिखाने के, भले ही वह देशभक्ति की चाशनी में क्यों न पगा हो। दरअसल यह कुछ-कुछ एक मिठाई ‘कराची’ हलुए को ‘कानपुरी हलुआ’ में बदलने जैसा है( यह बात अलग है कि हलुआ शब्द भी अरबी से आया है और भारत में रच बस गया है)।  बहरहाल, बात दक्षिण भारतीय मिठाई ‘मैसूर पाक’ की है। उपलब्ध जानकारी के अनुसार मैसूर राज्य (अब कर्नाटक का भाग) पर वर्ष 1902 से 1940 के बीच शासन करने वाले महाराजा नलवाड़ी कृष्णराज वोडेयार खाने के जानकार भी थे। वो अपने रसोइयों से तरह-तरह के व्यंजन बनवाते और नए-नए प्रयोग करवाते रहते थे। कहते हैं कि एक दोपहर उनका रसोइया काकासुरा मडप्पा रोज की तरह मिठाई बनाना भूल गया। लिहाजा उसने जल्दबाजी में बेसन, घी और चाशनी से एक मिठाई तैयार की और उसे ‘मैसूर पाका’ नाम दिया। चूंकि यह मिठाई मैसूर में ईजाद हुई थी, इसलिए राजा ने उसका नाम ‘मैसूर पाक’ रख दिया। कन्नड़ भाषा में बेसन के साथ चीनी की चाशनी मिले मिश्रण को पाका कहते हैं। कन्नड में ज्यादातर शब्द आकारांत होते हैं। जबकि मूल शब्द संस्कृत का ‘पाक’ ही है। मराठी में चाशनी को ही ‘पाक’ कहा जाता है।  ‘मैसूर पाक’ का आविष्कार तबकी बात है, जब ‘पाकिस्तान’ शब्द भी वजूद में नहीं आया था। खास बात यह है कि रसोइए काकासुरा मडप्पा की चौथी पीढ़ी के वशंज अभी भी स्वादिष्ट ‘मैसूर पाक’ बना और बेच रहे हैं। ‘मैसूर पाक’ मिठाई रेसिपी के हिसाब से यूं तो आसान लगती है, लेकिन इसे बनाने के लिए कुशल हलवाई होना जरूरी है। जयपुर में इस मिठाई का नाम बदलने पर मडप्पा परिवार को घोर आपत्ति है। उनका कहना है कि ‘मैसूर पाक’ उनकी पारिवारिक विरासत है। यह सांस्कृतिक प्रतीक भी है। कोई अपनी मर्जी  से  इसका नाम कैसे बदल सकता है? इसका एक अर्थ यह भी है कि जयपुर वाले‍ मिठाई का नाम बदलना ही चाहते हैं ‍तो उनकी अपनी‍ किसी मिठाई का बदलें।   
अब सवाल यह कि अगर ‘पाक’ शब्द पर ही आपत्ति है और उसे हटाने से ही देशभक्ति का इजहार होता हो तो समूचे ‘पाकशास्त्र’ को हमे क्या ‘श्रीशास्त्र’ कहना पड़ेगा? भाषाविदों के अनुसार ‘पाक’ यानी पकाना शब्द की व्युत्पत्ति संस्कृत की ‘पच्’ धातु से है। जो पकाया गया है, वह पाक है। साथ ही जो अग्नि से होकर गुजरा है, वह पाक यानी पवित्र है। दूसरी तरफ फारसी के जिस ‘पाक’ से ‘पाकिस्तान’ ( पवित्र देश) शब्द बना है, उसका अर्थ पवित्र होता है न कि पकाया हुआ। पाकिस्तान शब्द भी 1934 में वजूद में आया, इसको गढ़ने वाले पंजाब के चौधरी रहमत अली थे। फारसी ‘पाक’ की व्युत्पत्ति की बात करें तो  वर्तमान फारसी की पूर्वज भाषा अवेस्तन के पाक से है। इसी अवेस्तन भाषा में पारसियों का पवित्र धर्मग्रंथ ‘जेंद अवेस्ता’ रचा गया है। दरअसल अवेस्तन, मध्यकालीन फारसी और फिर नई फारसी के बहुत से शब्द भारतीय भाषाअोंमें रच गए हैं, जिन्हें अक्सर इ्स्लाम से जो़ड़ दिया जाता है, जबकि ये शब्द इस्लाम के उद्भव से काफी पहले से मौजूद हैं। जबकि भाषा विज्ञान संस्कृत और अवेस्तन (फारसी) भाषा का उद्भव ‘आदि भारोपीय भाषा’ से ही मानता है। कालांतर में दोनो भाषाएं अलग-अलग विकसित हुईं। 
चूंकि भारत में पाक से अर्थ मुख्य-त: पाक कला से है, इसलिए हमारी बहुत सी मिठाइयों में पाक शब्द जोड़ा गया है। मसलन आम पाक, मोती पाक, अदरक पाक, चांदी भस्म पाक, गोंद पाक, खोपरा पाक, मलाई पाक, मेथी पाक, गाजर पाक आदि। अब अगर इन सबके नाम बदलने पड़े तो क्या गाजर पाक को ‘गाजरश्री’ कहेंगे? और फिर ‘पाक’ शब्द का विकल्प ‘श्री’ कैसे हो सकता है?    
अगर ‘पाकिस्तान’ में से केवल ‘पाक’ को खारिज करना चाहें तो संस्कृत में भी पाक का एक अर्थ पवित्र (शुद्ध) है। हमारे पाकशास्त्र में भी शुद्धता पर काफी जोर दिया गया है। ‘पाक’ को हटाना इस शुद्धता को भी नकारना है। वैसे  भी पाकशास्त्र किसी भी संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, और हर संस्कृति की अपनी पाक शैली होती है।  भारतीय पाकशास्त्र भी वैदिक काल से चली आई है और अपने आप में समृद्ध कला और विरासत है। पाकशास्त्र के हमारे यहां कई ग्रंथ हैं। जिनमें प्रसिद्ध हैं ‘पाकदर्पण’, जिसका रचयिता राजा नल को माना जाता है। इसमें उस जमाने  की कई रेसिपियों का विस्तृत वर्णन है। इसी प्रकार बंगाली में ‘मिष्टान्नो पाक’, हिंदी में ‘पाक चंद्रिका’ एवं ‘वृहद पाक विज्ञान’ तथा मराठी में ‘हजार पाक क्रिया’ आदि ग्रंथ उपलब्ध हैं, जो पाकिस्तान का विचार उपजने से काफी पहले लिखे गए थे। तो क्या अब इन ग्रंथों के नाम में से भी ‘पाक’ शब्द हटाया जाएगा?  
गौरतलब है कि संस्कृत और फारसी में कई शब्द समान हैं और उनके अर्थ भी लगभग मिलते-जुलते हैं। उदाहरण के लिए संस्कृत ‘भ्राता’ और फारसी का ‘िबरादर, संस्कृत का द्वार और फारसी का दर, संस्कृत का तारा और फारसी का सितारा, संस्कृत का स्थान और फारसी का स्तान ( इसमें पहले कौन आया कहना मुश्किल है), इसी तरह वैदिक संस्कृत और फारसी की पूर्वज अवेस्ता भाषा मंद भी समानताएं हैं। जैसे कि संस्कृत का असुर और अवेस्ता का अहुर, संस्कृत का यज्ञ ( आहुति) और अवेस्तन का यस्न (स्तोत्र)। कहने  का तात्पर्य यह कि पाकिस्तान पर जवाबी स्ट्राइक करें, हर संभव क्षेत्र से करें, लेकिन अति उत्साह और उन्माद में ऐसा कुछ न करें, जिससे बाद में हमे ही पुनर्विचार करना पड़े। प्रतिघात का अर्थ अविचारी वार नहीं है। ‘पाक’ से ज्यादा बड़ी औकात हमारी प्राचीन पाककला और समृद्ध पाक परंपरा की है।   
 अजय बोकिल , संपादक

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