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हज यात्रा-मक्का मस्जिद पर काबिज हुए थे 300 हथियारबंद लड़ाके:15 दिन रहा कब्जा; इस हमले के बाद क्यों कट्टर बना सऊदी अरब

Updated on 06-06-2025 02:11 PM

सऊदी अरब में हज यात्रा का आज तीसरा दिन है। यह 4 से 9 जून तक चलेगी। अब तक 15 लाख से ज्यादा हज यात्री मक्का पहुंच चुके हैं। पिछले हादसों से सबक लेते हुए मक्का में इस बार सुरक्षा के हाइटेक इंतजाम किए हैं।

47 साल पहले मक्का में घटी एक घटना की वजह से सऊदी सरकार मक्का की सुरक्षा को लेकर खास फिक्रमंद रहती है। तब लगभग 300 हमलावरों ने मक्का पर कब्जा कर लिया था। उन्होंने हजारों तीर्थयात्रियों को बंधक बना लिया था।

तारीख- 20 नवंबर 1979

जगह- मक्का, सऊदी अरब

इस्लामिक कैलेंडर के 1400 साल पूरे हो रहे थे और नई इस्लामी सदी की शुरुआत हो रही थी। इस खास दिन पर दुनियाभर से लाखों मुसलमान हज करने मक्का पहुंचे थे। सुबह 5:15 बजे करीब 1 लाख लोगों ने मुसलमानों की सबसे पवित्र ग्रैंड मस्जिद में फज्र की नमाज पूरी की।

इसके कुछ ही मिनट बाद एक कट्टरपंथी नेता और उसके 300 हथियारबंद समर्थकों ने मस्जिद पर कब्जा कर लिया। उन्होंने हजारों तीर्थयात्रियों को बंधक बना लिया। वे सऊदी शासक को सत्ता से हटाने की मांग कर रहे थे।

शुरू के कुछ घंटे तक सऊदी सरकार को समझ ही नहीं आया कि क्या किया जाए। आखिरकार उन्होंने आतंकियों के खिलाफ एक्शन लेने का फैसला किया। दुनिया की सबसे बड़ी मस्जिद में दो हफ्ते तक भयंकर लड़ाई चली। सैकड़ों लोग मारे गए। आखिरकार सऊदी सेना ने मस्जिद पर फिर से कंट्रोल हासिल कर लिया।

ग्रैंड मस्जिद में घुसने वाले ये कट्टरपंथी कौन थे, उन्होंने सऊदी में तख्तापलट की कोशिश क्यों की, सरकार ने इसे कैसे नाकाम किया और इस एक घटना का सऊदी समेत पूरी दुनिया पर कितना बड़ा असर पड़ा?

साथियों हमने मक्का, मदीना और जेद्दा पर कब्जा कर लिया है। हम आज इमाम महदी के आने की घोषणा करते हैं… वही इस जुल्म और नाइंसाफी से भरी धरती पर इंसाफ और बराबरी से हुकूमत करेंगे।

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जब जुहैमन अल-उतैबी ने माइक्रोफोन पर यह ऐलान किया तो वहां मौजूद हजारों लोग हैरान रह गए। जुहैमन सऊदी सेना का एक पूर्व सैनिक था, जो अब एक कट्टरपंथी बन चुका था। उसका मानना था कि सऊदी सरकार इस्लाम से भटक चुकी है और उसे हटाना जरूरी है।

उसने ग्रैंड मस्जिद पर कब्जे के बाद अपने बहनोई मुहम्मद अब्दुल्ला अल-खतानी को ‘महदी’ घोषित कर दिया। इस्लाम में महदी उस शख्स को कहा जाता है जो कयामत के दिन आता है और लोगों का उद्धार करता है।

कंस्ट्रक्शन का फायदा उठाकर हथियार भेजे

सऊदी सरकार हजयात्रियों की सुविधा को ध्यान में रखकर 1950 के दशक से ही ग्रैंड मस्जिद के परिसर को और बड़ा कर रही थी। यह काम 1979 तक काफी हद तक पूरा हो चुका था, लेकिन कुछ जगहों पर निर्माण कार्य अभी भी चल रहा था।

जुहैमन ने इसका फायदा उठाया। जब इस्लामी नया साल शुरू होने ही वाला था और लोग मस्जिद में दुआ कर रहे थे, कई पिकअप ट्रक बिना किसी रुकावट के अंदर घुस गए। इनमें भारी मात्रा में असलहा-बारूद था। कुछ हथियार ताबूतों में छिपाकर भी लाए गए थे। ये वही ताबूत थे जिन्हें अंतिम संस्कार की नमाज के लिए मस्जिद लाया जाता है।

ग्रैंड मस्जिद में किसी तरह का हथियार ले जाना मना है। यहां तक कि वहां पर मौजूद सुरक्षाकर्मी के पास भी लाठी होती थी। ऐसे में 300 से ज्यादा हथियारबंद लड़ाकों ने कुछ ही मिनट में मस्जिद पर कब्जा कर लिया।

जुहैमन ने महदी के आने का ऐलान किया

जुहैमन ने ऐलान किया कि उसके लड़ाकों ने मक्का, मदीना और जेद्दा पर कब्जा कर लिया है। (मदीना और जेद्दा पर कब्जे की बात बाद में झूठी निकली।) फिर उसने ऐलान किया कि उनके साथ मौजूद मोहम्मद बिन अब्दुल्ला अल-कहतानी ही ‘महदी’ हैं, यानी वह व्यक्ति जिसकी भविष्यवाणी हदीसों में की गई है, जो दुनिया से बुराई मिटाने आता है।

शुरुआत में सऊदी प्रशासन को भी समझ नहीं आया कि हालात से कैसे निपटा जाए। राजा खालिद को सुबह जब यह खबर दी गई तो उन्होंने तुरंत रक्षा मंत्री और गृह मंत्री को मस्जिद भेजने का आदेश दिया। सुबह 9 बजे तक मक्का के गवर्नर और बाकी बड़े अधिकारी हालात का जायजा लेने वहां पहुंच चुके थे।

उधर, नेशनल गार्ड और सऊदी सेना ने धीरे-धीरे मस्जिद को चारों ओर से घेरना शुरू कर दिया। रिपोर्ट्स के मुताबिक उस समय किसी को भी उतना गंभीर मामला नहीं लग रहा था। दरअसल, उन्हें आतंकियों की संख्या का अंदाजा नहीं था। इसके अलावा उन्हें यह भरोसा था कि महदी जैसी बातों पर कोई यकीन नहीं करेगा।

सुबह 8 बजे जब एक पुलिस अफसर मस्जिद के पास पहुंचा तो एक स्नाइपर की गोली से घायल हो गया। कुछ ही देर में मस्जिद के चारों ओर से गोलियां चलने लगीं। हमले में आठ सुरक्षाकर्मी मारे गए और 36 घायल हो गए। तब अधिकारियों को मामले की गंभीरता का पता चला।

इसके बाद सऊदी के राजा खालिद ने सबसे पहले उलेमा यानी इस्लामी धर्मगुरुओं को बुलाया। दरअसल, पैगंबर मोहम्मद ने साफ कहा था कि मस्जिद में लड़ाई नहीं हो सकती। इसलिए मस्जिद को कब्जे से छुड़ाने के लिए ताकत का इस्तेमाल तभी किया जा सकता था, जब उलेमा इसकी इजाजत दें, लेकिन धर्मगुरुओं को यह फैसला लेने में 4 दिन लग गए।


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