भारत का नया रुख आतंकवाद के खिलाफ निर्णायक होगा तभी आतंकवादी गतिविधियों पर विराम लगेगा : राजा पाठक
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30-04-2025 10:24 AM
पाकिस्तान को हमेशा गद्दारी करने पर भी भारत ने बड़ा हृदय रखकर क्षमादान परंतु पाकिस्तान हमेशा विश्वास घाट पर आतंकवादी षड्यंत्र किए पाकिस्तान ने हमारी सहनशक्ति के अंतिम पड़ाव पर प्रहार किया अब इसकी कीमत पाकिस्तान को अवश्य चुकानी पड़ेगी और चुकाना भी चाहिए यही नीति रहती है राष्ट्र रक्षा में हमें जो भी कदम उठाना पड़े अब वह नीतिगत है आतंकवाद को जड़ से खत्म करने पूरा देश एक साथ है सरकार के साथ के सहयोग में अभी जो जयचंद राष्ट्र विरोधी गतिविधियां कर रहे हैं सरकार को कटघरे में खड़ा कर रहे हैं पाकिस्तान के प्रति सहानुभूति दर्शा रहे हैं जिन्हें 28 यात्रियों पर सहानुभूति नहीं हुई जो निर्दोष मारे गए वह निश्चित तौर पर देशद्रोही है मैं यह बाद दलगत नहीं कर रहा यह संपूर्ण राष्ट्र को एक होने का समय है जैसा कि हम सभी को विदित है कुछ दिन पूर्व जब प्रकृति की गोद में बसा कश्मीर पहल्गाम जो आमतौर पर शांति, सौंदर्य और अध्यात्म का प्रतीक माना जाता है, आतंकी हिंसा की चपेट में आता है, तो यह केवल एक स्थान पर हमला नहीं होता, यह उस समूची संस्कृति और परंपरा पर आघात होता है जो भारत को एक सहिष्णु, शांतिप्रिय राष्ट्र बनाती है। हाल ही में तीर्थयात्रियों और पर्यटकों पर हुए आतंकी हमले में 28 लोगों की जान चली गई। यह हमला भारत की धैर्यशीलता की अंतिम सीमा पर प्रहार जैसा था। इसके बाद भारत सरकार की प्रतिक्रिया सिर्फ एक क्रोध की उपज नहीं थी, बल्कि एक ठोस रणनीति की परिणति थी। अब वह समय आ गया है जब भारत आतंक की गली को बंद करे, चाहे उसका स्रोत कहीं भी हो।
भारत ने इस हमले के पश्चात जो निर्णय लिए, वे न केवल तात्कालिक प्रतिक्रिया थे, बल्कि एक निर्णायक और बहुआयामी नीति के संकेतक थे। हमारे यशस्वी प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि आतंकवाद को पनाह देने वालों को ढूंढकर सज़ा दी जाएगी, चाहे वे पृथ्वी के किसी भी छोर पर क्यों न हों। यह वक्तव्य एक ऐसे भारत की घोषणा थी जो अब आतंक के खिलाफ मूकदर्शक नहीं बनेगा, बल्कि निर्णायक ढंग से प्रतिशोध की राह पर चलेगा।
सरकार ने पहलगाम के बाद जो ठोस कदम उठाए, उनमें पाकिस्तान के साथ व्यापारिक और कूटनीतिक रिश्तों पर पुनर्विचार, सिंधु जल संधि को निलंबित करना, पाकिस्तानी उच्चायुक्त को निष्कासित करना और सार्क जैसे क्षेत्रीय मंचों से दूरी बनाना शामिल हैं। इन सभी निर्णयों से यह संकेत स्पष्ट हो गया कि भारत अब आतंकवाद को केवल एक सुरक्षा चुनौती नहीं, बल्कि अस्तित्व के संकट के रूप में देख रहा है।
भारत द्वारा सिंधु जल संधि के पुनर्विलोकन का निर्णय निस्संदेह अत्यंत महत्वपूर्ण है। 1960 में हुई इस संधि के अंतर्गत भारत ने छह नदियों में से तीन, सिंधु, झेलम और चिनाब का जल पाकिस्तान को देने का वचन दिया था। किंतु जब उन्हीं नदियों के तटों पर आतंक की फसल पनपने लगे, तब यह सोचना उचित है कि क्या भारत की सहमति को उसकी कमजोरी समझा गया? अब जब भारत जलप्रवाह को नियंत्रित करने की दिशा में सक्रिय हुआ है, तो यह पाकिस्तान के लिए एक गंभीर संकट का कारण बन सकता है। वहाँ की लगभग 80% कृषि सिंधु तंत्र पर निर्भर है और 25% जीडीपी इसी जल पर आधारित कृषि से आती है। अगर यह प्रवाह बाधित होता है, तो न केवल सिंचाई और पीने के पानी का संकट उत्पन्न होगा, बल्कि बिजली उत्पादन भी बुरी तरह प्रभावित होगा।
भारत की कूटनीतिक रणनीति भी अब परंपरागत शिष्टाचार की सीमाओं से आगे बढ़ चुकी है। पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अलग-थलग करने के लिए भारत ने सार्क से विमुख होकर BIMSTEC को प्राथमिकता दी है। साथ ही, FATF में भारत की सक्रिय भूमिका के चलते पाकिस्तान ‘ग्रे लिस्ट’ में बना रहा है। अमेरिका, फ्रांस, जापान और ऑस्ट्रेलिया जैसे देश भारत के साथ खड़े हुए हैं, और यह बताता है कि अब वैश्विक समुदाय भी आतंक के पोषणकर्ताओं के प्रति उदासीन नहीं रहना चाहता।
इन कूटनीतिक और जल नीतिगत फैसलों का गहरा असर पाकिस्तान की आंतरिक स्थिति पर पड़ा है। पाकिस्तान पहले से ही गंभीर आर्थिक संकट से जूझ रहा है। 2024 के अंत तक उसका विदेशी मुद्रा भंडार $4.5 अरब से नीचे आ गया था। IMF की शर्तों ने उसकी वित्तीय स्वतंत्रता को सीमित कर दिया है और वहां की महंगाई दर आम जनता की कमर तोड़ रही है। डॉलर के मुकाबले पाकिस्तानी रुपया ऐतिहासिक गिरावट पर है। ऐसे में यदि भारत सिंधु जल प्रवाह पर भी अंकुश लगाने में सफल होता है, तो पाकिस्तान की कृषि और बिजली व्यवस्था पर विपरीत प्रभाव पड़ना तय है, जिससे उसकी सामाजिक-राजनीतिक स्थिरता भी खतरे में पड़ सकती है।
पाकिस्तान के अंदरूनी हालात भी भारत के दबाव के चलते और अधिक विकृत हुए हैं। बलूचिस्तान, खैबर पख्तूनख्वा और सिंध जैसे प्रांतों में अलगाववादी आंदोलनों ने गति पकड़ी है। सेना और ISI के आतंक से जनता त्रस्त है, और नागरिक सरकार की निर्णय क्षमता लगभग निष्क्रिय हो चुकी है। कट्टरपंथ और लोकतांत्रिक संस्थाओं के बीच की खाई और चौड़ी होती जा रही है, जिससे पाकिस्तान आंतरिक रूप से विघटन की ओर बढ़ रहा है।
इस पृष्ठभूमि में यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि क्या भारत सैन्य विकल्पों पर विचार कर रहा है? उत्तर है- हां, किंतु सावधानीपूर्वक और सामरिक संतुलन के साथ। सर्जिकल स्ट्राइक और बालाकोट एयर स्ट्राइक पहले ही यह संकेत दे चुके हैं कि भारत अब पारंपरिक सुरक्षा सीमाओं में नहीं बंधा है। अब भारत हाइब्रिड वॉरफेयर की दिशा में भी सोच रहा है, जिसमें ड्रोन हमले, सैटेलाइट इंटेलिजेंस और साइबर युद्ध जैसी तकनीकों का प्रयोग शामिल है। नियंत्रण रेखा पर सैन्य कार्रवाई के विकल्प खुले हैं, किंतु भारत फिलहाल संघर्ष नहीं, समाधान चाहता है।
यह स्पष्ट है कि भारत अब बदल चुका है। यह भारत अब केवल प्रतिक्रिया नहीं करता, बल्कि रणनीतिक प्रतिशोध करता है। यह भारत अब जल को केवल संसाधन नहीं, रणनीतिक अस्त्र के रूप में देखता है। यह भारत अब कूटनीति को केवल संवाद का माध्यम नहीं, बल्कि दबाव का हथियार मानता है। यह भारत शांति चाहता है, परंतु अपने नागरिकों की सुरक्षा की कीमत पर नहीं।
भारत का यह नया रुख इसलिए भी जरूरी हो गया है क्योंकि पाकिस्तान की नीति वर्षों से 'गैर-राज्य तत्वों' के माध्यम से भारत को अस्थिर करने की रही है। पहल्गाम हमला इसी नीति की अगली कड़ी है। भारत अब इस सिलसिले को यहीं तोड़ देना चाहता है। उस गली को बंद करना चाहता है जिससे हिंसा, घृणा और रक्तपात का प्रवाह होता है। यह गली केवल सीमापार आतंकियों की नहीं, बल्कि उस विचारधारा की है जो आतंक को राजनीतिक औजार मानती है। भारत इस विचारधारा से निर्णायक युद्ध के लिए तैयार है।
अब समय आ गया है कि भारत अपने रुख को दृढ़ता से प्रस्तुत करे और दुनिया को यह दिखाए कि आतंकवाद के विरुद्ध लचीलापन नहीं, निर्णायकता आवश्यक है। भारत अब प्रतिक्रिया नहीं, नेतृत्व देना चाहता है, शांति के पक्ष में, मानवता के पक्ष में। इस बदलते वैश्विक परिदृश्य में भारत का यह निर्णय न केवल देश की सीमाओं की सुरक्षा का सवाल है, बल्कि एक विचार का संरक्षण है, वह विचार जो सह-अस्तित्व, शांति और लोकतंत्र में विश्वास करता है। इसीलिए भारत की यह नीति केवल पाकिस्तान के विरुद्ध नहीं, बल्कि आतंकवाद के मूल स्रोतों के विरुद्ध है।
यह लड़ाई केवल सीमा की नहीं, आत्मा की है। और भारत अब यह तय कर चुका है कि वह न केवल अपनी आत्मा की रक्षा करेगा, बल्कि शांति की खोज में दुनिया का पथप्रदर्शक भी बनेगा। आतंक की नली अब बंद होनी ही चाहिए। वह भारत के लिए ही नहीं, समस्त मानवता के लिए अनिवार्य है। भारत का नया रुख आतंकवाद के खिलाफ निर्णायक होगा तभी आतंकवादी गतिविधियों पर विराम लगेगा
पाकिस्तान को हमेशा गद्दारी करने पर भी भारत ने बड़ा हृदय रखकर क्षमादान परंतु पाकिस्तान हमेशा विश्वास घाट पर आतंकवादी षड्यंत्र किए पाकिस्तान ने हमारी सहनशक्ति के अंतिम पड़ाव पर…
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