सामाजिक समरसता के स्तंभ आधार: महात्मा ज्योतिबा फुले
Updated on
11-04-2025 01:38 PM
महात्मा फुले का जन्म 11 अप्रैल 1827 को महाराष्ट्र के सतारा में हुआ था। ज्योतिबा फुले बचपन से ही सामाजिक समदर्शी तथा होनहार मेधावी छात्र थे, आर्थिक कठिनाइयों के कारण फुले को बाल्यकाल में ही विद्यालय छोड़ने के लिए विवस कर दिया। वर्ष 1841 में पुन : फुले ने पुणे के स्कॉटिश मिशन स्कूल में प्रवेश लेकर अपनी पढ़ाई पूरी की। बचपन मे ही फुले का विवाह सावित्रीबाई से हो गया। नारी शिक्षा प्रतिबंधित होने के कारण ज्योतिबा फुले ने अपनी पत्नी सावित्रीबाई फुले को घर पर ही पढ़ना-लिखना सिखाया।
इसके बाद 01 जनवरी, 1848 को पुणे में बालिकाओं के लिए विद्यालय प्रारंभ कर नौ बालिकाओं को प्रवेश दिलाया तथा 17 वर्ष की सावित्रीबाई फुले भी शिक्षण कार्य करने की जिम्मेदारी सौंपी। महात्मा ज्योतिबा फुले एवं सावित्रीबाई फुले ने मिलकर वर्ष 1851 मे तीन विद्यालयों की स्थापना की गई। इस दौरान उन्होंने विधवा महिलाओं के लिए आश्रम खुलवाया, तथा विधवा पुनर्विवाह की प्रथम स्थापित की। महात्मा ज्योतिबा फुले एक अच्छे समाज सुधारक के साथ-साथ लेखक भी थे, उन्होंने गुलाम गीरी, किसान का कोड़ा जैसे महत्वपूर्ण पुस्तकें लिखी।
सत्यशोधक समाज का गठन
सदियों से चली आ रही सामाजिक कुरीतियों को समाप्त करने के लिए समाज को संगठित किया । फुले द्वारा वर्ष 1873 में ‘सत्यशोधक समाज’ की स्थापना की गयी। सत्यशोधक समाज का गठन मुंबई , पुणे मे भी किया गया।ज्योतिबा फुले के कार्यों से प्रभावित होकर समाज सुधारक विट्ठलराव कृष्णाजी वंदेकर ने उन्हें महात्मा की उपाधि दी। वर्ष 1878 में वायसराय लॉर्ड लिटन ने वर्नाक्यूलर एक्ट नामक एक कानून पास किया। इसके तहत प्रेस की आजादी को भंग कर दिया गया था। उस दौरान सत्यशोधक समाज दीनबंधु नामक एक समाचार पत्र निकालता था। यह अखबार भी इस कानून की चपेट में आया। 63 वर्ष की आयु मे 28 नवंबर, 1890 को महान समाज सुधारक , लेखक, चिंतक,विचारक , सामाजिक समरसता के सूत्रधार 19वीं शदी के युग पुरुष का देहावसान हुआ।
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