देश में कोरोना वायरस के मामले एक बार फिर बढ़ने लगे हैं। देश में एक्टिव केस की संख्या 1047 हो गई है, जो तीन दिन पहले लगभग 316 थी। मध्यप्रदेश में भी 6 एक्टिव केस है। इनमें इंदौर में 5 और उज्जैन में 1 कोविड केस सामने आया है।
कोरोना के बढ़ते मामलों के पीछे वायरस के लगातार हो रहे म्यूटेशन और दो नए सब-वैरिएंट का सक्रिय होना मुख्य कारण माना जा रहा है। हालांकि इसके बाद भी भोपाल समेत प्रदेश के कुछ बड़े शहरों में कोरोना को लेकर तैयारी और जागरूकता की कमी दिख रही है।
भोपाल में सरकारी अस्पताल संदिग्ध काेरोना मरीजों की जांच के आदेश का इंतजार कर रहे हैं। वहीं, उज्जैन में भी यही हालात हैं। किसी सरकारी अस्पताल में जांच नहीं की जा रही है। अधिकारियों को कहना है कि फिलहाल कोविड को लेकर कोई गाइडलाइन नहीं मिली है।
JN.1 वैरिएंट इम्यूनिटी कमजोर करता है
JN.1, ओमिक्रॉन के BA2.86 का एक स्ट्रेन है। इसे अगस्त 2023 में पहली बार देखा गया था। दिसंबर 2023 में WHO ने इसे 'वैरिएंट ऑफ इंटरेस्ट' घोषित किया। इसमें करीब 30 म्यूटेशन्स हैं, जो इम्यूनिटी कमजोर करते हैं।
अमेरिका के जॉन्स हॉपकिंस यूनिवर्सिटी के अनुसार JN.1 अन्य वैरिएंट की तुलना में ज्यादा आसानी से फैलता है, लेकिन यह बहुत गंभीर नहीं है। दुनिया के कई हिस्सों में यह सबसे आम वैरिएंट बना हुआ है।
JN.1 वैरिएंट के लक्षण कुछ दिनों से लेकर हफ्तों तक रह सकते हैं। अगर आपके लक्षण लंबे समय तक बने रहते हैं, तो हो सकता है कि आपको लंबे समय तक रहने वाला कोविड हो। यह एक ऐसी स्थिति है, जिसमें COVID-19 के कुछ लक्षण ठीक होने के बाद भी बने रहते हैं।
हालांकि, भोपाल एम्स के डॉक्टरों ने आश्वस्त किया है कि JN-1 तेजी से फैलता जरूर है, लेकिन यह आमतौर पर गंभीर बीमारी पैदा नहीं करता। फिर भी, दुनिया के कई हिस्सों में यह वैरिएंट सबसे आम बना हुआ है, जो सतर्कता की जरूरत को दर्शाता है।
भोपाल: जांच के आदेश के इंतजार में सरकारी हॉस्पिटल एक्सपर्ट के अनुसार, कोरोना के बढ़ते मामलों की सटीक वजह जानने और किस वैरिएंट का कितना प्रभाव है, इसकी पुष्टि के लिए ज्यादा से ज्यादा संदिग्ध मरीजों की जांच और उनके सैंपल्स की जीनोम सीक्वेंसिंग कराना अनिवार्य है।
भोपाल में के सरकारी जेपी अस्पताल और हमीदिया अस्पताल को अब भी स्वास्थ्य विभाग से आदेश आने का इंतजार है। वहीं, गांधी मेडिकल कॉलेज (GMC) में स्थित स्टेट वायरोलॉजी लैब ने तो शासन से आरटी-पीसीआर किट उपलब्ध कराने की मांग की है, जो जांच की धीमी गति का संकेत है।
5 करोड़ की जीनोम सीक्वेंसिंग मशीन का इस्तेमाल नहीं कोविड वायरस को फैलने से रोकने, उसके असर की बारीकी से निगरानी करने और सटीक जानकारी देने के मकसद से विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने मध्य प्रदेश की स्टेट वायरोलॉजी लैब को 5 करोड़ रुपए की जीनोम सीक्वेंसिंग मशीन दी थी। चौंकाने वाली बात यह है कि इस मशीन का इस्तेमाल ही नहीं किया जा रहा है।
ज्यादा से ज्यादा संदिग्ध मरीजों की जांच हो- एक्सपर्ट्स कोरोना की दूसरी लहर में हुई भारी मौतों के बाद मध्य प्रदेश के 5 मेडिकल कॉलेजों- भोपाल, इंदौर, ग्वालियर, जबलपुर और रीवा में जीनोम सीक्वेंसिंग लैब स्थापित करने का फैसला लिया गया था। लेकिन, भोपाल के गांधी मेडिकल कॉलेज की स्टेट वायरोलॉजी लैब और इंदौर के महात्मा गांधी मेडिकल कॉलेज को छोड़कर, बाकी किसी भी मेडिकल कॉलेज में अभी तक मशीनें नहीं आई हैं।
विशेषज्ञों का मानना है कि ऐसी स्थिति में इंदौर और भोपाल के सरकारी अस्पतालों को अधिक से अधिक संदिग्ध मरीजों की जांच करनी चाहिए और पॉजिटिव सैंपल्स को लैब में भेजना चाहिए, ताकि प्रदेश में कौन सा वैरिएंट ज्यादा लोगों को प्रभावित कर रहा है, इसकी सटीक जानकारी मिल सके।