मप्र में शराब की ऐसी तस्करी कि हाई कोर्ट भी हैरान है। एक ही दिन, एक ही थाना, लगभग एक जैसे समय में में दो अलग-अलग वाहनों से बराबर 14,760 लीटर अवैध शराब पकड़ी गई। दिलचस्प यह है कि आबकारी विभाग ने दोनों वाहनों के संबंध में कहा कि एक खराब हो गया था, इसलिए शराब को दूसरे में लोड किया गया। इसलिए जब्त शराब व वाहन छोड़ दिया गया। दोनों मामले हाई कोर्ट पहुंचे। अब हाई कोर्ट भी आश्चर्य में है कि डेढ़ घंटे में ट्रक खराब भी हुआ, वरिष्ठ अफसरों को सूचित किया गया, अस्थायी परमिट बना दिया गया...दूसरा ट्रक आ भी गया और एक ट्रक शराब को उसमें लोड भी कर लिया गया।
कोर्ट को बात संदिग्ध लगी तो दोनों ड्राइवरों की जमानत याचिका खारिज कर दी। साथ ही आबकारी विभाग के कामकाज और तस्करों से मिलीभगत पर सवाल उठाते हुए 21 अप्रैल को डीजीपी को एसआईटी जांच के आदेश दिए थे। कोर्ट ने स्पष्ट कहा कि यह कोई सामान्य जमानत का मामला नहीं है, बल्कि सिस्टम की साख से जुड़ा मुद्दा है। डीजीपी ऑफिस के विधि संबंधित प्रकरण देखने वाले एआईजी सीआईडी विक्रांत मुराब के मुताबिक, शुक्रवार तक आदेश की रजिस्टर्ड कॉपी नहीं मिली थी। आदेश मिलते ही आगामी कार्रवाई करेंगे।
कैसे उजागर हुई गड़बड़ी
मामला आलीराजपुर जिले के जोबट थाना क्षेत्र का है। 24 अक्टूबर 2024 को जोबट पुलिस को सूचना मिली थी कि दो वाहनों- एक कंटेनर (एमपी-09 जीएच 7550) और एक ट्रक (एमपी-15 एचए 3365) से अवैध शराब की तस्करी हो रही है। पुलिस ने फलिया चैक पोस्ट पर कंटेनर को पकड़ा और रेलवे ब्रिज बाग रोड पर ट्रक को रोका। दोनों से कुल 14760 लीटर अंग्रेजी शराब जब्त की गई, जो अलग-अलग बैच नंबर और तारीख की थी। कंटेनर के ड्राइवर शांतिलाल उर्फ सुनील व ट्रक ड्राइवर गजेंद्र को मौके पर गिरफ्तार किया गया। दोनों के पास शराब के परिवहन से संबंधित कोई वैध परमिट नहीं था। कंटेनर मामले में अपराध क्रमांक 470/2024 और ट्रक मामले में 469/2024 दर्ज किया गया।
कोर्ट में जब सामने आई हकीकत
4 फरवरी 2025 को इंदौर बेंच में जस्टिस संजीव एस. कलगांवकर की कोर्ट में दोनों ड्राइवरों की जमानत याचिकाओं पर एक ही दिन सुनवाई हुई। पता चला कि दोनों मामलों में अस्थायी परमिट घटना के दो महीने बाद 21 फरवरी 2025 को जारी किए गए थे। परमिट देने वाली एजेंसी का नाम था खालसा एंड कंपनी। इसके प्रतिनिधि पीयूष सिंह ने दावा किया कि एक वाहन खराब हो गया था, इसलिए शराब दूसरे वाहन में ट्रांसफर की। कोर्ट को यह तर्क हास्यास्पद लगा कि डेढ़ घंटे में वरिष्ठ अधिकारियों को वाहन के खराब होने की सूचना दी गई, परमिट तैयार हुआ और दूसरे वाहन का इंतजाम कर शराब ट्रांसफर भी कर दी गई।
गंधवानी, जिला धार के आबकारी उपनिरीक्षक राजेंद्र सिंह चौहान कोर्ट में पेश हुए और उन्होंने स्वीकार किया कि उन्हें रात 8:30 बजे वाहन खराब होने की सूचना मिली थी और 10:10 बजे शराब दूसरे वाहन से रवाना कर दी गई। कोर्ट ने पूछा कि क्या डेढ़ घंटे में पूरा प्रशासनिक और लॉजिस्टिक काम संभव है? चौहान संतोषजनक उत्तर नहीं दे सके। कोर्ट ने यह भी पाया कि दोनों मामलों में एक जैसी कहानी गढ़ी गई। पहले वाहन खराब हुआ, फिर दूसरा आया और शराब ट्रांसफर कर दी गई। दो महीने बाद अस्थायी परमिट दिखाया गया, जिससे शक गहरा हो गया कि अफसर तस्करों से मिले हैं।
जिला कोर्ट को भी गुमराह किया गया
21 अप्रैल 2025 को ट्रक ड्राइवर गजेंद्र की दूसरी जमानत याचिका की सुनवाई हुई। हाई कोर्ट को बताया गया कि आलीराजपुर के अतिरिक्त जिला मजिस्ट्रेट ने 29 जनवरी 2025 को आदेश दिया था कि अस्थायी परमिट पेश हो चुका है, इसलिए जब्त शराब और वाहन छोड़ सकते हैं। हाई कोर्ट ने कहा कि जिला कोर्ट से यह तथ्य छिपाया गया कि अस्थायी परमिट दो महीने बाद जारी किए गए। परमिट में दर्ज बैच नंबर व बरामद शराब का बैच नंबर अलग हैं।
सहायक आबकारी आयुक्त विक्रम दीप सांगर से स्पष्टीकरण लिया है। धार के सहायक जिला आबकारी अधिकारी आनंद दंडीर व उपनिरीक्षक राजेंद्र सिंह चौहान को कारण बताओ नोटिस जारी किया है।
-अभिजीत अग्रवाल, आबकारी आयुक्त
हाई कोर्ट ने जोबट में शराब जब्ती के प्रकरण में अस्थाई परमिट जारी करने की प्रक्रिया पर आशंका जताते हुए जांच के निर्देश दिए थे। जांच रिपोर्ट आबकारी आयुक्त को सौंप दी गई है।'
-संजय तिवारी, डिप्टी कमिश्नर आबकारी